क्यूँ मै ही हार जाता हूँ ?
वसुधा के गर्भ में पले तप की ऊष्मा ,भीतर मेरे होते हुए भी , मैं ही बर्फ बन जाता हूँ। क्यूँ मैं ही हार जाता हूँ ? दिवा को जन्म देने वाले अरुण सी चमक आँखों में रखे हुए भी , मैं ही तम बन जाता हूँ। क्यूँ मैं ही हार जाता हूँ ? संघर्ष के मैदां में पले वीरो सा साहस होकर भी मैं ही तो कायर बन जाता हूँ क्यों मैं ही हार जाता हूँ ? सही गलत की नब्ज थामे विवेकवान के चिंतन में , मैं ही बुद्धिहीन बन जाता हूँ क्यूँ मैं ही हार जाता हूँ ? अडिग पहाड़ की चट्टानों को काट राह बनाने वाली शैलजा सा धैर्य धारण होकर भी , मैं ही विचलित हो जाता हूँ क्यूँ मैं ही हार जाता हूँ ? बज्र की धार का प्रहार बनता रहा मैं , इन हारो को जोड़कर इक हार बुनता रहा मैं जीत की कब्रगाह में दफ़न हार की सीख , अगली जीत की नींव है बनती और मैं उस हार की जीत में छिपे सीख की चाह में हर जीत हार जाता हूँ क्यूँकि मैं हार जीतना चाहता हूँ , तभी तो मैं हार जाता हूँ।